खुरपका-मुंहपका रोग को लेकर पशु संचालकों को सावधानी बरतने की जरूरत

रुद्रप्रयाग। खुरपका-मुंहपका रोग को लेकर पशु संचालकों को सावधानी बरतने की जरूरत है। ये एक अत्यधिक संक्रामक वायरल बीमारी है, जो मवेशियों को प्रभावित करती है। इसके मुख्य लक्षणों में तेज बुखार, मुंह और खुरों के बीच छाले, लार टपकना और चारा न खाना शामिल है। यह रोग सीधे या दूषित वस्तुओं और हवा के माध्यम से फैलता है और आर्थिक रूप से बहुत हानिकारक हो सकता है। ऐसे में इस बीमारी के नियंत्रण को लेकर पशु पालन विभाग टीकाकरण और संक्रमित पशुओं को अलग करने की कार्यवाही में जुटा हुआ है।
इन दिनों जिले में पशु पालन विभाग की ओर से खुरपका-मुंहपका रोग की रोकथाम को लेकर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। बीते चार अक्टूबर से 7वें राउंड का वैक्सीनेशन कार्यक्रम किया जा रहा है। जनपद में लगभग 75 हजार बडे़ और 35 हजार के करीब छोटे पशु हैं। पशुओं को इस बीमारी के प्रकोप से बचाने के लिए टीकाकरण ही एक मात्र उपाय है। 45 दिनों में 70 हजार पशुओं के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है। इसमें पशुपालन विभाग की टीम लगी हुई है। पशुपालन विभाग की माने तो आने वाले समय में इस बीमारी को जड़ से समाप्त करने की कोशिश की जा रही है।
उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अशोक लीलाधर बिष्ट ने कहा कि खुरपका एवं मुंहपका रोग एक विषाणु (वायरस) के कारण होता है, जिसे एफ्थोवायरस कहा जाता है। यह वायरस सीधे संपर्क, दूषित वस्तुओं, चारा, या हवा के माध्यम से फैलता है और जानवरों में बुखार, मुंह, थन और खुरों के बीच छाले जैसे घावों का कारण बनता है.।
इसमें पशुओं में कमज़ोरी और दुबलापन देखा जाता है और युवा पशुओं में मृत्यु दर अधिक हो सकती है। इसका नियमित अंतराल पर टीकाकरण करवाना सबसे प्रभावी तरीका है, जबकि इसके लक्षण पाये जाने पर संक्रमित पशुओं को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग किया जाना चाहिए। बीमार पशुओं के बाड़े और उनके संपर्क में आने वाली हर चीज़ को कीटाणुनाशक से साफ किया जाना चाहिए। पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्तियों को स्वच्छता बरतनी चाहिए और प्रभावित पशुओं के लार और घावों के संपर्क में आने से बचना चाहिए। उनके संपर्क में आने के बाद हाथ अच्छी तरह धोना चाहिए। लार और घावों के संपर्क में आने वाली दूषित वस्तुओं को जला देना चाहिए या जमीन में गाड़ देना चाहिए।

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